यदि शरीर के प्रत्येक रोएँ में करोड़ों मुख हों और प्रत्येक मुख में असंख्य जिह्वाएँ हों, तो भी जो व्यक्ति उनसे भगवान् के नाम का रसपान करता है, उसकी महिमा का वर्णन युगों-युगों में भी नहीं किया जा सकता।
यदि हम लाखों ब्रह्माण्डों के भार को बार-बार आध्यात्मिक आनन्द के साथ तौलें, तो भी महान सुख और शान्ति की माप नहीं की जा सकती।
समस्त सांसारिक निधियाँ, मोतियों से भरे समुद्र और स्वर्ग के अनेक सुख, उनके नाम-स्मरण की महिमा और ऐश्वर्य के सामने कुछ भी नहीं हैं।
जिस भाग्यशाली भक्त को सद्गुरु द्वारा नाम का अभिषेक प्राप्त हो जाता है, उसका मन किस उच्च आध्यात्मिक अवस्था में लीन हो सकता है? इस अवस्था को व्यक्त करने और वर्णन करने में कोई भी समर्थ नहीं है। (430)