३१ स्मृतियाँ, १८ पुराण, ४ वेद, ६ शास्त्र, वेदों के विद्वान ब्रह्मा, महर्षि व्यास, परम विद्वान शुकदेव और सहस्त्र जिह्वा वाले शेषनाग भी भगवान की स्तुति करते हैं, पर उन्हें समझ नहीं पाते। वे उन्हें अनंत, अनंत कहकर संबोधित करते हैं।
शिव, ब्रह्मा के चार पुत्र, नारद तथा अन्य ऋषिगण, देवता, तत्वदर्शी मनुष्य, नौ योगीगण अपने चिंतन और ध्यान में ईश्वर को नहीं देख सके।
वे जंगलों, पहाड़ों और तीर्थों में भ्रमण करके, दान-पुण्य, व्रत-उपवास, होम-यज्ञ करके तथा देवताओं को भोजन आदि अर्पित करके भी उस अनंत प्रभु को नहीं पा सके।
ऐसे भाग्यशाली और सांसारिक माया का आनंद लेने वाले गुरु के सिख हैं जो सच्चे गुरु की प्रकट अवस्था में अप्राप्य प्रभु को देख रहे हैं। (५४३)