जिस प्रकार पानी की एक बूंद चिकने घड़े पर नहीं टिकती, उसी प्रकार लवणीय मिट्टी में कोई बीज नहीं उगता।
जिस प्रकार रेशमी कपास का वृक्ष इस पृथ्वी पर फलहीन हो जाता है, तथा जिस प्रकार विषैला वृक्ष लोगों को बहुत कष्ट देता है।
जैसे चन्दन के वृक्ष के पास रहने पर भी बाँस का वृक्ष सुगंध नहीं प्राप्त करता, तथा गंदगी पर से बहने वाली हवा भी दुर्गन्ध प्राप्त कर लेती है।
इसी प्रकार चिकना घड़ा, लवणीय भूमि, रेशमी कपास का वृक्ष, बांस का वृक्ष तथा मलिन-प्रदूषित वायु के समान होने के कारण सद्गुरु का उपदेश मेरे हृदय को छेदता नहीं (उससे अमृत नहीं निकलता) वरन् ऐसा लगता है मानो साँप ने अभी-अभी स्वाति पी ली हो।