कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 583


ਜੈਸੇ ਤਾਤ ਮਾਤ ਗ੍ਰਿਹ ਜਨਮਤ ਸੁਤ ਘਨੇ ਸਕਲ ਨ ਹੋਤ ਸਮਸਰ ਗੁਨ ਗਥ ਜੀ ।
जैसे तात मात ग्रिह जनमत सुत घने सकल न होत समसर गुन गथ जी ।

जिस प्रकार एक माता-पिता के अनेक पुत्र उत्पन्न होते हैं, किन्तु सभी एक समान गुणवान नहीं होते।

ਚਟੀਆ ਅਨੇਕ ਜੈਸੇ ਆਵੈਂ ਚਟਸਾਲ ਬਿਖੈ ਪੜਤ ਨ ਏਕਸੇ ਸਰਬ ਹਰ ਕਥ ਜੀ ।
चटीआ अनेक जैसे आवैं चटसाल बिखै पड़त न एकसे सरब हर कथ जी ।

जैसे एक स्कूल में कई विद्यार्थी होते हैं, लेकिन सभी एक विषय को समान रूप से समझने में कुशल नहीं होते।

ਜੈਸੇ ਨਦੀ ਨਾਵ ਮਿਲਿ ਬੈਠਤ ਅਨੇਕ ਪੰਥੀ ਹੋਤ ਨ ਸਮਾਨ ਸਭੈ ਚਲਤ ਹੈਂ ਪਥ ਜੀ ।
जैसे नदी नाव मिलि बैठत अनेक पंथी होत न समान सभै चलत हैं पथ जी ।

जैसे एक नाव में कई यात्री यात्रा करते हैं, लेकिन उन सभी का गंतव्य अलग-अलग होता है। हर कोई नाव छोड़कर अपने-अपने रास्ते पर चला जाता है।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਚਰਨ ਸਰਨ ਹੈਂ ਅਨੇਕ ਸਿਖ ਸਤਿਗੁਰ ਕਰਨ ਕਾਰਨ ਸਮਰਥ ਜੀ ।੫੮੩।
तैसे गुर चरन सरन हैं अनेक सिख सतिगुर करन कारन समरथ जी ।५८३।

इसी प्रकार भिन्न-भिन्न गुणों वाले अनेक सिख सच्चे गुरु की शरण लेते हैं, परन्तु सभी कारणों का कारण - समर्थ सच्चा गुरु उन्हें नाम रूपी अमृत प्रदान करके उन्हें एक समान बना देता है। (583)