कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 75


ਚੀਟੀ ਕੈ ਉਦਰ ਬਿਖੈ ਹਸਤੀ ਸਮਾਇ ਕੈਸੇ ਅਤੁਲ ਪਹਾਰ ਭਾਰ ਭ੍ਰਿੰਗੀਨ ਉਠਾਵਈ ।
चीटी कै उदर बिखै हसती समाइ कैसे अतुल पहार भार भ्रिंगीन उठावई ।

जैसे चींटी के पेट में हाथी नहीं समा सकता, जैसे छोटा सा उड़ने वाला कीड़ा पहाड़ का वजन नहीं उठा सकता,

ਮਾਛਰ ਕੈ ਡੰਗ ਨ ਮਰਤ ਹੈ ਬਸਿਤ ਨਾਗੁ ਮਕਰੀ ਨ ਚੀਤੈ ਜੀਤੈ ਸਰਿ ਨ ਪੂਜਾਵਈ ।
माछर कै डंग न मरत है बसित नागु मकरी न चीतै जीतै सरि न पूजावई ।

जैसे मच्छर के डंक से साँपों के राजा को नहीं मारा जा सकता, वैसे ही मकड़ी न तो बाघ को जीत सकती है, न ही उससे मुकाबला कर सकती है।

ਤਮਚਰ ਉਡਤ ਨ ਪਹੂਚੈ ਆਕਾਸ ਬਾਸ ਮੂਸਾ ਤਉ ਨ ਪੈਰਤ ਸਮੁੰਦ੍ਰ ਪਾਰ ਪਾਵਈ ।
तमचर उडत न पहूचै आकास बास मूसा तउ न पैरत समुंद्र पार पावई ।

जैसे उल्लू उड़कर आकाश तक नहीं पहुंच सकता, वैसे ही चूहा समुद्र को तैरकर पार नहीं कर सकता,

ਤੈਸੇ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੇਮ ਨੇਮ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਬੋਧਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਗਰ ਜਿਉ ਬੂੰਦ ਹੁਇ ਸਮਾਵਈ ।੭੫।
तैसे प्रिअ प्रेम नेम अगम अगाधि बोधि गुरमुखि सागर जिउ बूंद हुइ समावई ।७५।

इसी प्रकार हमारे प्रिय प्रभु के प्रेम की नीतियाँ भी हमारी समझ से परे हैं। यह बहुत गंभीर विषय है। जैसे पानी की एक बूँद समुद्र के पानी में मिल जाती है, वैसे ही गुरु का भक्त सिख अपने प्रिय प्रभु के साथ एक हो जाता है। (75)