जब एक समर्पित सिख सच्चे गुरु से मिलता है, तो उसकी दृष्टि गुरु के दर्शन/झलक में लीन हो जाती है। और फिर उसकी आत्मा सभी को पहचान लेती है जैसे कि वह सभी में निवास करता है; जैसे आकाश/अंतरिक्ष सभी जल घड़ों में समान रूप से निवास करता है।
सच्चे गुरु और सिख का मिलन सिख को गुरु के वचनों/आज्ञाओं में लीन रहने की क्षमता प्रदान करता है। जिस तरह एक संगीतकार अपने द्वारा बजाई जा रही धुन में पूरी तरह से लीन हो जाता है, उसी तरह एक सिख का अपने गुरु में लीन होना भी महत्वपूर्ण है।
गुरुभक्त मन की एकाग्रता और गुरु वचनों से तीनों लोकों की समस्त घटनाओं को अपने शरीर में अनुभव कर लेता है।
दिव्य ज्ञान की सहायता से गुरुभक्त की आत्मा उस एक प्रभु से एकाकार हो जाती है जो अपनी सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है। यह मिलन नदी के जल का सागर में मिलन जैसा है। (63)