यह मानव प्राणी जन्म लेते समय भगवान से भोजन और वस्त्र लेकर आता है तथा उनसे वादा करता है कि वह महान आत्माओं की संगति करेगा तथा उनके नाम का ध्यान करेगा।
परन्तु इस संसार में आते ही वह सर्वदाता भगवान को त्यागकर उनकी दासी माया में आसक्त हो जाता है। फिर वह काम, क्रोध आदि पाँच राक्षसों के जाल में भटकता रहता है। उसके बचने का कोई उपाय नहीं है।
मनुष्य यह सत्य भूल जाता है कि संसार मिथ्या है और मृत्यु सत्य है। वह यह नहीं समझ पाता कि उसके लिए क्या लाभदायक है और क्या हानिप्रद है। सांसारिक वस्तुओं में लिप्त रहना निश्चित पराजय है, जबकि ईश्वर के चिंतन में जीवन व्यतीत करना निश्चित पराजय है।
इसलिए हे साथी! इस जीवन का समय बीत रहा है। तुम्हें जीवन का खेल जीतना ही होगा। पुण्यात्माओं के पवित्र समागम में शामिल हो जाओ और अनंत प्रभु के प्रति अपना प्रेम विकसित करो। (498)