सच्चे गुरु की शरण में एक समर्पित सिख उच्च आध्यात्मिक स्तर पर निवास करता है। उसकी सभी आशाएँ और इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं और उसका मन फिर कभी विचलित नहीं होता।
सच्चे गुरु के दर्शन पाकर एक समर्पित सिख किसी अन्य से मिलने की इच्छा नहीं रखता। वह अन्य सभी यादों से स्वयं को मुक्त कर लेता है।
वह अपने मन को गुरु के वचन में लगाकर अन्य सब विचारों से रहित हो जाता है। (वह अन्य सब व्यर्थ बातों को त्याग देता है।) इस प्रकार उसका अपने प्रभु के प्रति प्रेम वर्णन से परे है।
सच्चे गुरु के एक क्षणिक दर्शन से ही उनके नाम की अमूल्य निधि प्राप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति की स्थिति अद्भुत होती है तथा देखने वाले के लिए आश्चर्य का कारण होती है। (105)