कबित सव्ये भाई गुरदास जी

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ਜੋਈ ਮਿਲੈ ਆਪਾ ਖੋਇ ਸੋਈ ਤਉ ਨਾਯਕਾ ਹੋਇ ਮਾਨ ਕੀਏ ਮਾਨਮਤੀ ਪਾਈਐ ਨ ਮਾਨ ਜੀ ।
जोई मिलै आपा खोइ सोई तउ नायका होइ मान कीए मानमती पाईऐ न मान जी ।

जो साधिका स्त्री अपने अहंकार को त्यागकर प्रिय पति से मिलती है, वही पति की प्रिय पत्नी है। अहंकार और दंभ से युक्त व्यक्ति को भगवान से आदर और सम्मान नहीं मिल सकता।

ਜੈਸੇ ਘਨਹਰ ਬਰਸੈ ਸਰਬਤ੍ਰ ਸਮ ਉਚੈ ਨ ਚੜਤ ਜਲ ਬਸਤ ਨੀਚਾਨ ਜੀ ।
जैसे घनहर बरसै सरबत्र सम उचै न चड़त जल बसत नीचान जी ।

जिस प्रकार बादल सभी स्थानों पर समान रूप से वर्षा करते हैं, उसका जल टीलों से ऊपर नहीं चढ़ सकता। जल सदैव निचले स्तरों पर जाकर ठहर जाता है।

ਚੰਦਨ ਸਮੀਪ ਜੈਸੇ ਬੂਡ੍ਯੋ ਹੈ ਬਡਾਈ ਬਾਂਸ ਆਸ ਪਾਸ ਬਿਰਖ ਸੁਬਾਸ ਪਰਵਾਨ ਜੀ ।
चंदन समीप जैसे बूड्यो है बडाई बांस आस पास बिरख सुबास परवान जी ।

जिस प्रकार बांस अपने ऊंचे और महान होने के अभिमान में चूर होकर चंदन की सुगंध से वंचित रहता है, किन्तु सभी छोटे-बड़े पेड़-पौधे उस मधुर गंध को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं।

ਕ੍ਰਿਪਾ ਸਿੰਧ ਪ੍ਰਿਯ ਤੀਯ ਹੋਇ ਮਰਜੀਵਾ ਗਤਿ ਪਾਵਤ ਪਰਮਗਤਿ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ਜੀ ।੬੬੨।
क्रिपा सिंध प्रिय तीय होइ मरजीवा गति पावत परमगति सरब निधान जी ।६६२।

इसी प्रकार दया के सागर-प्रिय प्रभु की पत्नी बनने के लिए भी स्वयं का बलिदान देकर जीवित मृतक बनना पड़ता है, तभी सर्व निधियों का खजाना (सच्चे गुरु से भगवान का नाम) प्राप्त हो सकता है और परम दिव्य पद प्राप्त हो सकता है। (662)