जो साधिका स्त्री अपने अहंकार को त्यागकर प्रिय पति से मिलती है, वही पति की प्रिय पत्नी है। अहंकार और दंभ से युक्त व्यक्ति को भगवान से आदर और सम्मान नहीं मिल सकता।
जिस प्रकार बादल सभी स्थानों पर समान रूप से वर्षा करते हैं, उसका जल टीलों से ऊपर नहीं चढ़ सकता। जल सदैव निचले स्तरों पर जाकर ठहर जाता है।
जिस प्रकार बांस अपने ऊंचे और महान होने के अभिमान में चूर होकर चंदन की सुगंध से वंचित रहता है, किन्तु सभी छोटे-बड़े पेड़-पौधे उस मधुर गंध को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं।
इसी प्रकार दया के सागर-प्रिय प्रभु की पत्नी बनने के लिए भी स्वयं का बलिदान देकर जीवित मृतक बनना पड़ता है, तभी सर्व निधियों का खजाना (सच्चे गुरु से भगवान का नाम) प्राप्त हो सकता है और परम दिव्य पद प्राप्त हो सकता है। (662)