तो क्या होगा यदि कोई आध्यात्मिक शक्तियों के माध्यम से वायु का बवंडर बन जाए और वायुमंडल में भटकता रहे, जबकि उसके मन में सभी इच्छाएं उत्पन्न हो गई हों और वह नहीं जानता कि उनसे कैसे छुटकारा पाया जाए?
जिस प्रकार रस्सी से घड़ा बांधकर कुएं से निकाला गया जल सागर नहीं बन जाता तथा शवों की तलाश में आकाश में घूमने वाला गिद्ध पक्षियों का देवता नहीं माना जा सकता, उसी प्रकार बुराई से भरा हुआ मनुष्य भी आध्यात्मिक रूप से जागृत होने का दावा नहीं कर सकता।
बिल में रहने वाले चूहे को गुफा में रहने वाला संत नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार जिस व्यक्ति ने किसी का भला नहीं किया, वह चूहे के समान है, भले ही वह अपने इष्ट देव को पाने के लिए कठोर तप क्यों न करे। यदि कोई सांप की तरह लंबी आयु प्राप्त कर ले, तो वह कभी भी पाप नहीं कर सकता।
परन्तु गुरु का आज्ञाकारी सिख माया के त्रिगुणों के प्रभाव से अपने को बचाकर रखता है तथा हृदय से वैरागी होता है। वह अपना अहंकार त्याग देता है तथा सबकी सेवा करके तथा दूसरों के कार्य को उत्तम रीति से पूरा करके नम्रता की प्रतिमूर्ति बन जाता है। (224)