कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 559


ਜੈਸੇ ਤੌ ਮਰਾਲ ਮਾਲ ਬੈਠਤ ਹੈ ਮਾਨਸਰ ਮੁਕਤਾ ਅਮੋਲ ਖਾਇ ਖਾਇ ਬਿਗਸਾਤ ਹੈ ।
जैसे तौ मराल माल बैठत है मानसर मुकता अमोल खाइ खाइ बिगसात है ।

जैसे हंसों का झुंड मानसरोवर झील पर पहुंचता है और वहां मोती खाकर प्रसन्न होता है

ਜੈਸੇ ਤੌ ਸੁਜਨ ਮਿਲਿ ਬੈਠਤ ਹੈ ਪਾਕਸਾਲ ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਬਿੰਜਨਾਦਿ ਰਸ ਖਾਤ ਹੈ ।
जैसे तौ सुजन मिलि बैठत है पाकसाल अनिक प्रकार बिंजनादि रस खात है ।

जैसे दोस्त रसोईघर में एकत्र होकर एक साथ कई स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेते हैं,

ਜੈਸੇ ਦ੍ਰੁਮ ਛਾਯਾ ਮਿਲ ਬੈਠਤ ਅਨੇਕ ਪੰਛੀ ਖਾਇ ਫਲ ਮਧੁਰ ਬਚਨ ਕੈ ਸੁਹਾਤ ਹੈ ।
जैसे द्रुम छाया मिल बैठत अनेक पंछी खाइ फल मधुर बचन कै सुहात है ।

जिस प्रकार अनेक पक्षी एक वृक्ष की छाया में एकत्रित होकर उसके मीठे फल खाते हुए मधुर ध्वनि निकालते हैं,

ਤੈਸੇ ਗੁਰਸਿਖ ਮਿਲ ਬੈਠਤ ਧਰਮਸਾਲ ਸਹਜ ਸਬਦ ਰਸ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਅਘਾਤ ਹੈ ।੫੫੯।
तैसे गुरसिख मिल बैठत धरमसाल सहज सबद रस अंम्रित अघात है ।५५९।

इसी प्रकार श्रद्धालु और आज्ञाकारी शिष्य धर्मशाला में एकत्र होकर उनके अमृततुल्य नाम का चिन्तन करके सुखी और संतुष्ट होते हैं। (559)