जो स्त्री-रूपी साधिका उन्हें प्रिय लगती है, भगवान उसे जगाते हैं, किन्तु जो रात भर जागती रहती है, उससे वे बात नहीं करते।
जो साधिका स्त्री उन्हें प्रिय है, यदि वह अभिमानी और अहंकारी भी हो, तो भी वे उसे प्रसन्न करने और अपने पास लाने के लिए दौड़ पड़ते हैं। दूसरी ओर, साधिका स्त्री बाह्य रूप से सेवा करती हुई दिखाई दे, तो भी वे उसे प्रिय नहीं लगते।
जिस साधिका स्त्री को भगवान् पसंद करते हैं और उस पर कृपा करते हैं, उसे वे प्रसन्न करते हैं, किन्तु जो स्त्री सज-धज कर अहंकार से युक्त होकर उनके पास आती है, उसे वे अपने चरण भी नहीं छूने देते।
जिस साधक स्त्री को भगवान् चाहते हैं, उसके सारे प्रयत्न और परिश्रम फलित होते हैं। उसकी महिमा अपूर्व है और उसका वर्णन करना कठिन है। (594)