जिस प्रकार ढेकुली (चमड़े से बनी एक थैलानुमा वस्तु जिसमें एक लम्बा लट्ठा उथले कुओं से पानी खींचने के लिए लीवर की तरह काम में लाया जाता है) झूठी विनम्रता प्रदर्शित करते हुए झुकती है जिसे देखकर पानी उसके प्रेम में फंस जाता है;
वह खेत में पानी गिरा देता है और पानी की दयालुता के परिणामस्वरूप फसल हरी और फलदार हो जाती है, लेकिन झूठी विनम्रता की ढेकुली खाली रह जाती है और अपना वजन खुद उठाती रहती है;
इस प्रकार ढेकुली निरन्तर ऊपर-नीचे होती रहती है, परन्तु जल अपना परोपकारी स्वभाव नहीं छोड़ता और न ही ढेकुली अपना झूठा प्रेम प्रदर्शित करने का स्वभाव छोड़ती है।
इसी प्रकार स्वार्थी और स्वेच्छाचारी लोगों की संगति से हमें कष्ट का सामना करना पड़ता है, जबकि गुरु-चेतन लोगों की संगति से मन गुरु के ज्ञान से प्रकाशित होता है, जो अत्यंत सुखदायी है। (238)