कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 520


ਜੈਸੇ ਬਛੁਰਾ ਬਿਲਲਾਤ ਮਾਤ ਮਿਲਬੇ ਕਉ ਬੰਧਨ ਕੈ ਬਸਿ ਕਛੁ ਬਸੁ ਨ ਬਸਾਤ ਹੈ ।
जैसे बछुरा बिललात मात मिलबे कउ बंधन कै बसि कछु बसु न बसात है ।

जिस प्रकार एक बछड़ा अपनी मां से मिलने के लिए छटपटाता है, लेकिन रस्सी से बंधा होने के कारण वह असहाय हो जाता है।

ਜੈਸੇ ਤਉ ਬਿਗਾਰੀ ਚਾਹੈ ਭਵਨ ਗਵਨ ਕੀਓ ਪਰ ਬਸਿ ਪਰੇ ਚਿਤਵਤ ਹੀ ਬਿਹਾਤ ਹੈ ।
जैसे तउ बिगारी चाहै भवन गवन कीओ पर बसि परे चितवत ही बिहात है ।

जिस प्रकार जबरन या अवैतनिक श्रम में फंसा व्यक्ति घर जाना चाहता है और दूसरों के नियंत्रण में रहते हुए योजना बनाने में समय व्यतीत करता है।

ਜੈਸੇ ਬਿਰਹਨੀ ਪ੍ਰਿਅ ਸੰਗਮ ਸਨੇਹੁ ਚਾਹੇ ਲਾਜ ਕੁਲ ਅੰਕਸ ਕੈ ਦੁਰਬਲ ਗਾਤ ਹੈ ।
जैसे बिरहनी प्रिअ संगम सनेहु चाहे लाज कुल अंकस कै दुरबल गात है ।

जिस प्रकार अपने पति से अलग हुई पत्नी प्रेम और मिलन चाहती है, लेकिन पारिवारिक लाज के डर से ऐसा नहीं कर पाती और इस प्रकार अपना शारीरिक आकर्षण खो देती है।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਚਰਨ ਸਰਨਿ ਸੁਖ ਚਾਹੈ ਸਿਖੁ ਆਗਿਆ ਬਧ ਰਹਤ ਬਿਦੇਸ ਅਕੁਲਾਤ ਹੈ ।੫੨੦।
तैसे गुर चरन सरनि सुख चाहै सिखु आगिआ बध रहत बिदेस अकुलात है ।५२०।

इसी प्रकार सच्चा शिष्य सच्चे गुरु की शरण का सुख भोगना चाहता है, परंतु उनकी आज्ञा से बँधा हुआ दूसरे स्थान पर उदास होकर भटकता रहता है। (520)