जिस प्रकार एक रोगी अनेक वैद्यों और डॉक्टरों से अपनी पीड़ा और परेशानी बताता है तथा आवश्यक उपचार की प्रार्थना करता है और जब तक वह ठीक होकर स्वस्थ नहीं हो जाता, तब तक वह दर्द के कारण रोता और चिल्लाता रहता है।
जिस प्रकार एक भिखारी भीख की तलाश में दर-दर भटकता रहता है और जब तक उसकी भूख शांत नहीं हो जाती, तब तक उसे संतुष्टि नहीं मिलती।
जिस प्रकार पति से विरक्त पत्नी शुभ मुहूर्त, शकुनों की खोज में रहती है तथा प्रिय पति के मिलने तक व्याकुल रहती है।
इसी प्रकार, जैसे एक भौंरा कमल के फूल की खोज करता है और उसका रस चूसते हुए उस बक्से रूपी फूल में फंस जाता है, वैसे ही एक भौंरा रूपी साधक अपने प्रिय भगवान से मिलन की इच्छा रखता हुआ अमृत रूपी नाम की खोज तब तक करता रहता है जब तक वह उसे टी से प्राप्त नहीं कर लेता।