भगवान का सनातन रूप जिसका साकार स्वरूप सद्गुरु है, निराकार है, जो सभी आश्रयों से रहित है, जिसे किसी भी भोजन की इच्छा नहीं है, जो सभी विकारों से मुक्त है, जन्म लेने के लिए गर्भ में प्रवेश करने से मुक्त है, जो अविनाशी है, असीम है और जिसकी थाह नहीं ली जा सकती
वह आसक्ति, द्वेष से रहित, सभी प्रलोभनों और कलंकों से मुक्त, निर्भय, माया से अप्रभावित तथा परे है।
जिसका विस्तार जाना नहीं जा सकता, जो अगोचर है, इन्द्रियों से परे है, जिसका विस्तार अज्ञेय है, जो सदा स्थिर है, धारणाओं से परे है, धोखे से परे है और जिसे कोई चोट नहीं पहुँचा सकता।
उसे जानना अत्यंत विस्मयकारी, अद्भुत और विस्मयकारी है, जो किसी को भी आनंदित कर सकता है। सद्गुरु का तेजोमय स्वरूप ऐसे ही सनातन और तेजस्वी ईश्वर का स्वरूप है। (344)