कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 565


ਜੈਸੇ ਦੀਪ ਜੋਤ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ਚਲੇ ਜਾਤ ਸੁਖ ਗਹੇ ਕਰ ਦੁਚਿਤੁ ਹ੍ਵੈ ਭਟਕਾ ਸੇ ਭੇਟ ਹੈ ।
जैसे दीप जोत लिव लागै चले जात सुख गहे कर दुचितु ह्वै भटका से भेट है ।

जिस प्रकार दीपक के प्रकाश में मन को एकाग्र करने से स्थिरता से चलने में सहायता मिलती है, किन्तु दीपक हाथ में पकड़ लेने पर आगे कदम बढ़ाने में अनिश्चितता होती है, क्योंकि दीपक के प्रकाश से हाथ पर पड़ने वाली छाया दृष्टि को क्षीण कर देती है।

ਜੈਸੇ ਦਧ ਕੂਲ ਬੈਠ ਮੁਕਤਾ ਚੁਨਤ ਹੰਸ ਪੈਰਤ ਨ ਪਾਵੈ ਪਾਰ ਲਹਰ ਲਪੇਟ ਹੈ ।
जैसे दध कूल बैठ मुकता चुनत हंस पैरत न पावै पार लहर लपेट है ।

जैसे हंस मानसरोवर झील के किनारे मोती चुनता है, लेकिन पानी में तैरते समय न तो मोती पाता है और न ही पार जा पाता है। वह लहरों में फंस सकता है।

ਜੈਸੇ ਨ੍ਰਿਖ ਅਗਨਿ ਕੈ ਮਧ੍ਯ ਭਾਵ ਸਿਧ ਹੋਤ ਨਿਕਟ ਬਿਕਟ ਦੁਖ ਸਹਸਾ ਨ ਮੇਟ ਹੈ ।
जैसे न्रिख अगनि कै मध्य भाव सिध होत निकट बिकट दुख सहसा न मेट है ।

जैसे ठंड से बचने के लिए आग को बीच में रखना ज़्यादा फ़ायदेमंद होता है, लेकिन अगर आग को बहुत पास रखा जाए तो जलने का डर पैदा होता है। इस तरह ठंड की परेशानी के साथ-साथ जलने का डर भी बढ़ जाता है।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਸਬਦ ਸਨੇਹ ਕੈ ਪਰਮ ਪਦ ਮੂਰਤ ਸਮੀਪ ਸਿੰਘ ਸਾਪ ਕੀ ਅਖੇਟ ਹੈ ।੫੬੫।
तैसे गुर सबद सनेह कै परम पद मूरत समीप सिंघ साप की अखेट है ।५६५।

इसी प्रकार गुरु की सलाह और शिक्षाओं को प्रेमपूर्वक ग्रहण करने और उसे चेतना में बसाने से मनुष्य परमपद को प्राप्त करता है। लेकिन गुरु के किसी भी रूप पर ध्यान केन्द्रित करना और फिर भगवान की निकटता की आशा/लालसा करना सांप या शेर का शिकार होने के समान है। (यह एक विशेष बात है।