यदि कोई वीर योद्धा किसी विद्रोही जमींदार को हराकर राजा के संरक्षण में ले आता है, तो राजा प्रसन्न होकर उसे पुरस्कृत करता है तथा उसे यश प्रदान करता है।
लेकिन यदि राजा का कोई कर्मचारी राजा को छोड़कर विद्रोही जमींदार से जा मिलता है, तो राजा उसके विरुद्ध अभियान चलाता है तथा विद्रोही जमींदार के साथ-साथ विश्वासघाती नौकर को भी मार डालता है।
यदि किसी का कर्मचारी राजा की शरण में जाता है तो वहाँ उसकी प्रशंसा होती है, किन्तु यदि राजा का सेवक किसी के पास जाता है तो चारों ओर से उसकी बदनामी होती है।
इसी प्रकार यदि कोई देवी-देवता का भक्त सच्चे गुरु के पास समर्पित शिष्य बनकर आता है, तो सच्चे गुरु उसे अपनी शरण प्रदान करते हैं, उसे अपने नाम का ध्यान करवाते हैं। परंतु कोई भी देवी-देवता किसी भी समर्पित सिख को शरण देने में समर्थ नहीं है।