कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 127


ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਧ ਚਰਨਾਮ੍ਰਤ ਨਿਧਾਨ ਪਾਨ ਕਾਲ ਮੈ ਅਕਾਲ ਕਾਲ ਬਿਆਲ ਬਿਖੁ ਮਾਰੀਐ ।
गुरमुखि साध चरनाम्रत निधान पान काल मै अकाल काल बिआल बिखु मारीऐ ।

गुरु-चेतना वाला व्यक्ति साधु-संत की संगति में रहकर सभी नौ निधियों का लाभ उठाता है। कालचक्र में रहते हुए भी वह उसके प्रकोप से बचा रहता है। वह काल के विष को सर्प की तरह नष्ट कर देता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਧ ਚਰਨਾਮ੍ਰਤ ਨਿਧਾਨ ਪਾਨ ਕੁਲ ਅਕੁਲੀਨ ਭਏ ਦੁਬਿਧਾ ਨਿਵਾਰੀਐ ।
गुरमुखि साध चरनाम्रत निधान पान कुल अकुलीन भए दुबिधा निवारीऐ ।

वह साधु पुरुषों के चरणों की धूलि में बैठकर भगवान के नाम का रस पीता है, जाति-अभिमान से रहित हो जाता है, तथा अपने मन से ऊंच-नीच का भेद मिटा देता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਧ ਚਰਨਾਮ੍ਰਤ ਨਿਧਾਨ ਪਾਨ ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਨਿਜ ਆਸਨ ਕੀ ਤਾਰੀਐ ।
गुरमुखि साध चरनाम्रत निधान पान सहज समाधि निज आसन की तारीऐ ।

वह साधु पुरुषों की संगति में रहकर तथा नाम रूपी अमृत का आनन्द लेते हुए अपने आत्म में लीन रहता है तथा चेतनापूर्वक संतुलन की स्थिति में आसक्त रहता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਧ ਚਰਨਾਮ੍ਰਤ ਪਰਮਪਦ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪੰਥ ਅਬਿਗਤ ਗਤਿ ਨਿਆਰੀਐ ।੧੨੭।
गुरमुखि साध चरनाम्रत परमपद गुरमुखि पंथ अबिगत गति निआरीऐ ।१२७।

वह महात्माओं की संगति में भगवान के अमृतरूपी नाम का रसपान करके परमपद को प्राप्त करता है। गुरुपरायण पुरुषों का मार्ग वर्णन से परे है। वह अविनाशी और दिव्य है। (127)