जिस प्रकार अस्थिर एवं लहरदार जल में सूर्य या चन्द्रमा की पूरी छवि नहीं देखी जा सकती।
जिस प्रकार दिव्य परी उर्वशी के चेहरे की सम्पूर्ण सुन्दरता गंदे दर्पण में नहीं देखी जा सकती।
जैसे दीपक के प्रकाश के बिना पास पड़ी हुई वस्तु भी दिखाई नहीं देती, वैसे ही अंधेरे में घर भी चोरों के भय से डरावना और भयावह लगता है।
इसी प्रकार मन भी माया के अन्धकार में उलझा हुआ है। अज्ञानी मन, सद्गुरु के चिन्तन और भगवन्नाम के ध्यान के अपूर्व आनन्द का आनन्द नहीं ले सकता। (496)