जो भगवान अत्यन्त दुर्गम, अनन्त, प्रकाशमान और समझ से परे हैं, उन तक सभी उपलब्ध साधनों से इन्द्रियों को वश में करके भी नहीं पहुंचा जा सकता।
उसे यज्ञ, होम (अग्नि देवता को अर्पण), साधु-संतों के भोज, राजयोग आदि से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। उसे संगीत के वाद्यों या वेदों के पाठ से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता।
ऐसे देवों के देव को तीर्थस्थानों पर जाकर, शुभ दिवस मनाकर या देव सेवा करके भी नहीं पाया जा सकता। अनेक प्रकार के व्रत-उपवास भी उन्हें निकट नहीं ला सकते। चिंतन भी व्यर्थ है।
ईश्वर प्राप्ति के सभी उपाय व्यर्थ हैं। उन्हें केवल साधु पुरुषों की संगति में बैठकर उनका गुणगान करने तथा एकाग्रचित्त होकर उनका ध्यान करने से ही प्राप्त किया जा सकता है। (304)