कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 377


ਤੀਰਥ ਮਜਨ ਕਰਬੈ ਕੋ ਹੈ ਇਹੈ ਗੁਨਾਉ ਨਿਰਮਲ ਤਨ ਤ੍ਰਿਖਾ ਤਪਤਿ ਨਿਵਾਰੀਐ ।
तीरथ मजन करबै को है इहै गुनाउ निरमल तन त्रिखा तपति निवारीऐ ।

तीर्थ स्थानों पर स्नान का महत्व यह है कि इससे शरीर स्वच्छ हो जाता है और सभी इच्छाओं और आकर्षणों से मुक्त हो जाता है।

ਦਰਪਨ ਦੀਪ ਕਰ ਗਹੇ ਕੋ ਇਹੈ ਗੁਨਾਉ ਪੇਖਤ ਚਿਹਨ ਮਗ ਸੁਰਤਿ ਸੰਮਾਰੀਐ ।
दरपन दीप कर गहे को इहै गुनाउ पेखत चिहन मग सुरति संमारीऐ ।

हाथ में दर्पण धारण करने से चेहरे की आकृति और शारीरिक संरचना का पता चलता है। हाथ में दीपक धारण करने से व्यक्ति को अपने मार्ग का पता चलता है।

ਭੇਟਤ ਭਤਾਰ ਨਾਰਿ ਕੋ ਇਹੈ ਗੁਨਾਉ ਸ੍ਵਾਂਤਬੂੰਦ ਸੀਪ ਗਤਿ ਲੈ ਗਰਬ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੀਐ ।
भेटत भतार नारि को इहै गुनाउ स्वांतबूंद सीप गति लै गरब प्रतिपारीऐ ।

पति-पत्नी का मिलन सीप में पड़ी स्वाति की बूंद की तरह है जो मोती बन जाती है। पत्नी गर्भवती होती है और अपने गर्भ में मोती जैसे बच्चे का पालन-पोषण करती है।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਚਰਨਿ ਸਰਨਿ ਕੋ ਇਹੈ ਗੁਨਾਉ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸ ਕਰਿ ਹਾਰੁ ਉਰਿ ਧਾਰੀਐ ।੩੭੭।
तैसे गुर चरनि सरनि को इहै गुनाउ गुर उपदेस करि हारु उरि धारीऐ ।३७७।

इसी प्रकार सच्चे गुरु की शरण में आकर उनसे दीक्षा लेने वाला शिष्य ही गुरु का सिख है जो सच्चे गुरु की शिक्षाओं को अपने हृदय में धारण करता है और उसके अनुसार अपना जीवन व्यतीत करता है। (377)