गुरु का सिख अनुयायी अपने आप को खो देता है और अपने जीवन में ही मोक्ष प्राप्त कर लेता है। गृहस्थ जीवन जीते हुए, उसे अपने रास्ते में आने वाली परेशानी या शांति/आराम की कोई चिंता नहीं होती।
और फिर जन्म और मृत्यु, पाप और पुण्य, स्वर्ग और नरक, सुख और क्लेश, चिंता और खुशी सभी उसके लिए समान हैं।
ऐसे गुरु-चेतन व्यक्ति के लिए जंगल और घर, भोग और त्याग, लोक परंपराएं और शास्त्र परंपराएं, ज्ञान और चिंतन, शांति और संकट, दुःख और सुख, मित्रता और शत्रुता सभी समान हैं।
गुरु-चेतन व्यक्ति के लिए मिट्टी या सोना, विष और अमृत, जल और अग्नि सभी एक समान हैं। क्योंकि, उसका प्रेम गुरु के सतत ज्ञान की स्थिर अवस्था में लीन रहना है। (९०)