जैसे अंधेरी रात में साँप अपनी मणि निकालता है, उससे खेलता है और फिर उसे छिपा देता है और किसी को नहीं दिखाता।
जिस प्रकार एक सद्गुणी पत्नी रात्रि में अपने पति के साथ रहकर सुख भोगती है और दिन निकलते ही पुनः वस्त्र धारण कर लेती है।
जिस प्रकार कमल के फूल के डिब्बे में बंद भौंरा मधुर रस चूसता रहता है और सुबह फूल के पुनः खिलते ही उससे कोई सम्बन्ध स्वीकार किये बिना उड़ जाता है।
इसी प्रकार सद्गुरु का आज्ञाकारी शिष्य भगवान् के नाम के ध्यान में लीन रहता है और नाम रूपी अमृत का रसपान करके तृप्त और आनंदित अनुभव करता है। (परन्तु वह अपनी अमृतमयी स्थिति का वर्णन किसी से नहीं करता) (568)