जिस प्रकार एक दुष्ट स्त्री अपनी मीठी और भोली बातों से एक बच्चे को अपनी ओर आकर्षित करती है, जिससे बच्चा उसकी ओर आकर्षित हो जाता है और वह सोचता है कि वह उस पर अपना प्यार लुटाएगी।
जैसे एक माँ अपने पीड़ित और रोते हुए बेटे को दवा देती है लेकिन बच्चे को लगता है कि वह उसे जहर परोस रही है।
संसारी प्राणियों की बुद्धि भी इस बालक के समान है। वे ईश्वर रूपी सच्चे गुरु के गुणों को नहीं जानते जो उनके अन्दर के सभी विकारों को नष्ट करने में पूर्णतया समर्थ हैं। इस सम्बन्ध में भाई गुरदास जी कहते हैं: "अवगुण लै गुण विकानै वचनै दा सूरा"। वर. 13/
सच्चा गुरु सभी प्रकार से परिपूर्ण है। वह हमारी समझ से परे है। कोई भी उसके विशाल ज्ञान को नहीं समझ सकता। केवल वही अपनी क्षमताओं को जानता है। बस इतना ही कहा जा सकता है कि वह अनंत है, अनंत है, अनंत है। (406)