जिस प्रकार कच्चे पारे के सेवन से शरीर में अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं, किन्तु जब उसे कुछ रसायनों से उपचारित कर शुद्ध किया जाता है, तो अनेक बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं।
जिस प्रकार कच्चे पारे में रखा सोना अपनी पहचान खो देता है, लेकिन जब वही रासायनिक प्रतिक्रिया वाला पारा तांबे के साथ मिलता है तो सोना बन जाता है।
जो पारा इतना अस्थिर और चंचल होता है कि उसे हाथों से नहीं पकड़ा जा सकता, लेकिन वही जब रासायनिक रूप से छोटी गोलियों में परिवर्तित हो जाता है तो योगियों और सिद्धों के लिए पूजनीय हो जाता है।
इसी प्रकार मनुष्य अपने जीवन में जैसी संगति करता है, संसार में उसे वैसी ही योग्यता और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। यदि वह सच्चे गुरु के सच्चे भक्तों की संगति का आनंद लेता है, तो गुरु की शिक्षाओं के कारण उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। परंतु शिष्य होते हुए भी