कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 506


ਜੈਸੇ ਬਿਖ ਤਨਕ ਹੀ ਖਾਤ ਮਰਿ ਜਾਤਿ ਤਾਤ ਗਾਤਿ ਮੁਰਝਾਤ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੀ ਬਰਖਨ ਕੀ ।
जैसे बिख तनक ही खात मरि जाति तात गाति मुरझात प्रतिपाली बरखन की ।

जिस प्रकार थोड़ी सी मात्रा में विष ग्रहण करने से व्यक्ति तुरन्त मर जाता है, तथा कई वर्षों से पाला-पोसा गया शरीर भी नष्ट हो जाता है।

ਜੈਸੇ ਕੋਟਿ ਭਾਰਿ ਤੂਲਿ ਰੰਚਕ ਚਿਨਗ ਪਰੇ ਹੋਤ ਭਸਮਾਤ ਛਿਨ ਮੈ ਅਕਰਖਨ ਕੀ ।
जैसे कोटि भारि तूलि रंचक चिनग परे होत भसमात छिन मै अकरखन की ।

ठीक उसी प्रकार जैसे भैंस के दूध का एक डिब्बा यदि साइट्रिक एसिड की एक बूंद से दूषित हो जाए तो वह बेकार हो जाता है और रखने लायक नहीं रहता।

ਮਹਿਖੀ ਦੁਹਾਇ ਦੂਧ ਰਾਖੀਐ ਭਾਂਜਨ ਭਰਿ ਪਰਤਿ ਕਾਂਜੀ ਕੀ ਬੂੰਦ ਬਾਦਿ ਨ ਰਖਨ ਕੀ ।
महिखी दुहाइ दूध राखीऐ भांजन भरि परति कांजी की बूंद बादि न रखन की ।

जिस प्रकार आग की एक चिंगारी कुछ ही समय में कपास की लाखों गांठों को जला सकती है।

ਤੈਸੇ ਪਰ ਤਨ ਧਨ ਦੂਖਨਾ ਬਿਕਾਰ ਕੀਏ ਹਰੈ ਨਿਧਿ ਸੁਕ੍ਰਤ ਸਹਜ ਹਰਖਨ ਕੀ ।੫੦੬।
तैसे पर तन धन दूखना बिकार कीए हरै निधि सुक्रत सहज हरखन की ।५०६।

इसी प्रकार मनुष्य दूसरों के धन और सौन्दर्य के साथ सहवास करके जो दुर्गुण और पाप अर्जित करता है, उससे वह सुख, पुण्य और शान्ति रूपी बहुमूल्य पदार्थ खो देता है। (506)