जैसे सारा संसार तीर्थस्थानों पर जाता है, किन्तु वहाँ रहने वाला बगुला उन स्थानों की महानता का मूल्यांकन नहीं करता,
जैसे सूर्य के उदय होने पर चारों ओर तेज प्रकाश फैल जाता है, परन्तु उल्लू ने इतने बुरे कर्म किये होते हैं कि वह अँधेरी गुफाओं और बिलों में छिपा रहता है,
जिस प्रकार वसंत ऋतु में सभी वनस्पतियां फूल और फल देती हैं, किन्तु कपास का वृक्ष, जो अपने को बड़ा और शक्तिशाली होने की प्रशंसा दिलाता है, वह फूल और फल से वंचित रह जाता है।
मैं अभागा, सच्चे गुरु की तरह विशाल सागर के समीप रहते हुए भी उनकी प्रेममयी भक्ति से प्राप्त होने वाले अमृत का स्वाद नहीं ले पाया। मैं तो केवल बरसाती पक्षी की तरह प्यास का शोर मचाता रहा। मैं तो केवल व्यर्थ तर्क-वितर्क और चिंतन में ही लगा रहा।