कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 525


ਜਾਤ ਹੈ ਜਗਤ੍ਰ ਜੈਸੇ ਤੀਰਥ ਜਾਤ੍ਰਾ ਨਮਿਤ ਮਾਝ ਹੀ ਬਸਤ ਬਗ ਮਹਿਮਾ ਨ ਜਾਨੀ ਹੈ ।
जात है जगत्र जैसे तीरथ जात्रा नमित माझ ही बसत बग महिमा न जानी है ।

जैसे सारा संसार तीर्थस्थानों पर जाता है, किन्तु वहाँ रहने वाला बगुला उन स्थानों की महानता का मूल्यांकन नहीं करता,

ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਗਾਸ ਭਾਸਕਰਿ ਜਗਮਗ ਜੋਤ ਉਲੂ ਅੰਧ ਕੰਧ ਬੁਰੀ ਕਰਨੀ ਕਮਾਨੀ ਹੈ ।
पूरन प्रगास भासकरि जगमग जोत उलू अंध कंध बुरी करनी कमानी है ।

जैसे सूर्य के उदय होने पर चारों ओर तेज प्रकाश फैल जाता है, परन्तु उल्लू ने इतने बुरे कर्म किये होते हैं कि वह अँधेरी गुफाओं और बिलों में छिपा रहता है,

ਜੈਸੇ ਤਉ ਬਸੰਤ ਸਮੈ ਸਫਲ ਬਨਾਸਪਤੀ ਨਿਹਫਲ ਸੈਂਬਲ ਬਡਾਈ ਉਰ ਆਨੀ ਹੈ ।
जैसे तउ बसंत समै सफल बनासपती निहफल सैंबल बडाई उर आनी है ।

जिस प्रकार वसंत ऋतु में सभी वनस्पतियां फूल और फल देती हैं, किन्तु कपास का वृक्ष, जो अपने को बड़ा और शक्तिशाली होने की प्रशंसा दिलाता है, वह फूल और फल से वंचित रह जाता है।

ਮੋਹ ਗੁਰ ਸਾਗਰ ਮੈ ਚਾਖਿਓ ਨਹੀ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਤ੍ਰਿਖਾਵੰਤ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਜੁਗਤ ਬਕਬਾਨੀ ਹੈ ।੫੨੫।
मोह गुर सागर मै चाखिओ नही प्रेम रसु त्रिखावंत चात्रिक जुगत बकबानी है ।५२५।

मैं अभागा, सच्चे गुरु की तरह विशाल सागर के समीप रहते हुए भी उनकी प्रेममयी भक्ति से प्राप्त होने वाले अमृत का स्वाद नहीं ले पाया। मैं तो केवल बरसाती पक्षी की तरह प्यास का शोर मचाता रहा। मैं तो केवल व्यर्थ तर्क-वितर्क और चिंतन में ही लगा रहा।