कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 409


ਬਾਛੈ ਨ ਸ੍ਵਰਗ ਬਾਸ ਮਾਨੈ ਨ ਨਰਕ ਤ੍ਰਾਸ ਆਸਾ ਨ ਕਰਤ ਚਿਤ ਹੋਨਹਾਰ ਹੋਇ ਹੈ ।
बाछै न स्वरग बास मानै न नरक त्रास आसा न करत चित होनहार होइ है ।

सच्चे गुरु का आज्ञाकारी शिष्य न तो स्वर्ग की कामना करता है, न ही नर्क से डरता है। वह अपने मन में कोई लालसा या अभिलाषा नहीं रखता। बल्कि वह मानता है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, वह सही ही है।

ਸੰਪਤ ਨ ਹਰਖ ਬਿਪਤ ਮੈ ਨ ਸੋਗ ਤਾਹਿ ਸੁਖ ਦੁਖ ਸਮਸਰਿ ਬਿਹਸ ਨ ਰੋਇ ਹੈ ।
संपत न हरख बिपत मै न सोग ताहि सुख दुख समसरि बिहस न रोइ है ।

धन-संपत्ति अर्जित करने से उसे खुशी नहीं मिलती। संकट के समय में भी वह कभी उदास नहीं होता। इसके बजाय वह संकट और सुख दोनों को एक समान मानता है और उन पर न तो विलाप करता है और न ही खुश होता है।

ਜਨਮ ਜੀਵਨ ਮ੍ਰਿਤ ਮੁਕਤਿ ਨ ਭੇਦ ਖੇਦ ਗੰਮਿਤਾ ਤ੍ਰਿਕਾਲ ਬਾਲ ਬੁਧਿ ਅਵਲੋਇ ਹੈ ।
जनम जीवन म्रित मुकति न भेद खेद गंमिता त्रिकाल बाल बुधि अवलोइ है ।

वह जन्म-मृत्यु से नहीं डरता और मोक्ष की इच्छा नहीं रखता। वह सांसारिक द्वंद्वों से कम प्रभावित होता है और हमेशा संतुलन की स्थिति में रहता है। वह जीवन के तीनों काल से परिचित रहता है और संसार की सभी घटनाओं को जानता है। फिर भी वह हमेशा अपने आस-पास की दुनिया को देखता रहता है।

ਗਿਆਨ ਗੁਰ ਅੰਜਨ ਕੈ ਚੀਨਤ ਨਿਰੰਜਨਹਿ ਬਿਰਲੋ ਸੰਸਾਰ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤ ਮੈ ਕੋਇ ਹੈ ।੪੦੯।
गिआन गुर अंजन कै चीनत निरंजनहि बिरलो संसार प्रेम भगत मै कोइ है ।४०९।

जो व्यक्ति सद्गुरु के ज्ञानरूपी काजल से युक्त हो जाता है, वह भव-मुक्त भगवान् को पहचान लेता है। परन्तु ऐसा व्यक्ति जो उस अवस्था को प्राप्त कर पाता है, संसार में दुर्लभ है। (४०९)