सच्चे गुरु का आज्ञाकारी शिष्य न तो स्वर्ग की कामना करता है, न ही नर्क से डरता है। वह अपने मन में कोई लालसा या अभिलाषा नहीं रखता। बल्कि वह मानता है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, वह सही ही है।
धन-संपत्ति अर्जित करने से उसे खुशी नहीं मिलती। संकट के समय में भी वह कभी उदास नहीं होता। इसके बजाय वह संकट और सुख दोनों को एक समान मानता है और उन पर न तो विलाप करता है और न ही खुश होता है।
वह जन्म-मृत्यु से नहीं डरता और मोक्ष की इच्छा नहीं रखता। वह सांसारिक द्वंद्वों से कम प्रभावित होता है और हमेशा संतुलन की स्थिति में रहता है। वह जीवन के तीनों काल से परिचित रहता है और संसार की सभी घटनाओं को जानता है। फिर भी वह हमेशा अपने आस-पास की दुनिया को देखता रहता है।
जो व्यक्ति सद्गुरु के ज्ञानरूपी काजल से युक्त हो जाता है, वह भव-मुक्त भगवान् को पहचान लेता है। परन्तु ऐसा व्यक्ति जो उस अवस्था को प्राप्त कर पाता है, संसार में दुर्लभ है। (४०९)