कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 200


ਪਸੂਆ ਮਾਨੁਖ ਦੇਹ ਅੰਤਰਿ ਅੰਤਰੁ ਇਹੈ ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਕੋ ਬਿਬੇਕ ਅਬਿਬੇਕ ਹੈ ।
पसूआ मानुख देह अंतरि अंतरु इहै सबद सुरति को बिबेक अबिबेक है ।

मानव और पशु शरीर में एकमात्र अंतर यह है कि मानव को चेतना और गुरु के पवित्र शब्द के मिलन का ज्ञान होता है, लेकिन पशु के पास ऐसा कोई ज्ञान नहीं होता और न ही कोई क्षमता होती है।

ਪਸੁ ਹਰਿਹਾਉ ਕਹਿਓ ਸੁਨਿਓ ਅਨਸੁਨਿਓ ਕਰੈ ਮਾਨਸ ਜਨਮ ਉਪਦੇਸ ਰਿਦੈ ਟੇਕ ਹੈ ।
पसु हरिहाउ कहिओ सुनिओ अनसुनिओ करै मानस जनम उपदेस रिदै टेक है ।

यदि किसी पशु को हरे-भरे खेतों या चरागाहों से दूर रहने को कहा जाए तो वह इसकी अनदेखी कर देता है, लेकिन मनुष्य सच्चे गुरु की शिक्षाओं को अपने हृदय में बसा लेता है और उनका पालन करता है।

ਪਸੂਆ ਸਬਦ ਹੀਨ ਜਿਹਬਾ ਨ ਬੋਲਿ ਸਕੈ ਮਾਨਸ ਜਨਮ ਬੋਲੈ ਬਚਨ ਅਨੇਕ ਹੈ ।
पसूआ सबद हीन जिहबा न बोलि सकै मानस जनम बोलै बचन अनेक है ।

शब्दों के बिना पशु अपनी जीभ से बोल नहीं सकता, लेकिन मनुष्य अनेक शब्द बोल सकता है।

ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਸੁਨਿ ਸਮਝਿ ਬੋਲੈ ਬਿਬੇਕੀ ਨਾਤੁਰ ਅਚੇਤ ਪਸੁ ਪ੍ਰੇਤ ਹੂ ਮੈ ਏਕ ਹੈ ।੨੦੦।
सबद सुरति सुनि समझि बोलै बिबेकी नातुर अचेत पसु प्रेत हू मै एक है ।२००।

यदि मनुष्य गुरु की वाणी को सुनता, समझता और बोलता है, तो वह ज्ञानी और बुद्धिमान है, अन्यथा वह भी अज्ञानी पशुओं में से एक और मूर्ख है। (200)