गुरु और सिख का मिलन सिख को ईश्वरीय शब्द पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करता है। इरहा, पिंगला और सुखमना सिख के दसवें द्वार में प्रवेश करती हैं और उसे आत्म-साक्षात्कार कराती हैं तथा उसे आध्यात्मिक शांति प्रदान करती हैं।
नाम सिमरन का अभ्यास करने से चंचल मन शांत हो जाता है और सभी बाधाओं को पार करके शांति और स्थिरता के क्षेत्र में लीन हो जाता है - दशम द्वार। उन्हें योग साधना की पीड़ा नहीं सहनी पड़ती।
नाम का अभ्यासी स्वयं को धन के त्रिआयामी प्रभाव अर्थात् सांसारिक आकर्षणों से पृथक कर लेता है और परमपद को प्राप्त कर लेता है।
जिस प्रकार सूर्य को देखकर चकवी (सूर्य पक्षी), चंद्रमा को देखकर चकोर (चंद्र पक्षी), बादलों को देखकर वर्षा पक्षी तथा मोर आनंद की अद्भुत अवस्था में पहुंच जाते हैं, उसी प्रकार नाम सिमरन का अभ्यास करने वाला गुन्नुख (गुरु भावनाशील व्यक्ति) भी कमल के फूल की तरह उन्नति करता रहता है।