जैसे चम्पा (मिशेलिया चम्पाका) की लता तो सर्वत्र फैली रहती है, परन्तु उसकी सुगंध केवल उसके फूलों में ही महसूस होती है।
जैसे एक वृक्ष सर्वत्र फैला हुआ दिखाई देता है, परन्तु उसके मीठेपन या कड़वाहट का पता उसके फल को चखने से ही चलता है।
जैसे सच्चे गुरु का नाम-जप, उसकी धुन और सुर हृदय में रहते हैं, परन्तु उसकी चमक अमृत रूपी नाम से सराबोर जिह्वा पर होती है।
इसी प्रकार परमेश्वर तो सभी के हृदय में पूर्ण रूप से विराजमान है, परन्तु उसे केवल सच्चे गुरु और महात्माओं की शरण में आकर ही पाया जा सकता है। (586)