कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 586


ਜੈਸੇ ਤਉ ਚੰਪਕ ਬੇਲ ਬਿਬਧ ਬਿਥਾਰ ਚਾਰੁ ਬਾਸਨਾ ਪ੍ਰਗਟ ਹੋਤ ਫੁਲ ਹੀ ਮੈ ਜਾਇ ਕੈ ।
जैसे तउ चंपक बेल बिबध बिथार चारु बासना प्रगट होत फुल ही मै जाइ कै ।

जैसे चम्पा (मिशेलिया चम्पाका) की लता तो सर्वत्र फैली रहती है, परन्तु उसकी सुगंध केवल उसके फूलों में ही महसूस होती है।

ਜੈਸੇ ਦ੍ਰੁਮ ਦੀਰਘ ਸ੍ਵਰੂਪ ਦੇਖੀਐ ਪ੍ਰਸਿਧ ਸ੍ਵਾਦ ਰਸ ਹੋਤ ਫਲ ਹੀ ਮੈ ਪੁਨ ਆਇ ਕੈ ।
जैसे द्रुम दीरघ स्वरूप देखीऐ प्रसिध स्वाद रस होत फल ही मै पुन आइ कै ।

जैसे एक वृक्ष सर्वत्र फैला हुआ दिखाई देता है, परन्तु उसके मीठेपन या कड़वाहट का पता उसके फल को चखने से ही चलता है।

ਜੈਸੇ ਗੁਰ ਗ੍ਯਾਨ ਰਾਗ ਨਾਦ ਹਿਰਦੈ ਬਸਤ ਕਰਤ ਪ੍ਰਕਾਸ ਤਾਸ ਰਸਨਾ ਰਸਾਇ ਕੈ ।
जैसे गुर ग्यान राग नाद हिरदै बसत करत प्रकास तास रसना रसाइ कै ।

जैसे सच्चे गुरु का नाम-जप, उसकी धुन और सुर हृदय में रहते हैं, परन्तु उसकी चमक अमृत रूपी नाम से सराबोर जिह्वा पर होती है।

ਤੈਸੇ ਘਟ ਘਟ ਬਿਖੈ ਪੂਰਨ ਬ੍ਰਹਮ ਰੂਪ ਜਾਨੀਐ ਪ੍ਰਤ੍ਯਛ ਮਹਾਂਪੁਰਖ ਮਨਾਇ ਕੈ ।੫੮੬।
तैसे घट घट बिखै पूरन ब्रहम रूप जानीऐ प्रत्यछ महांपुरख मनाइ कै ।५८६।

इसी प्रकार परमेश्वर तो सभी के हृदय में पूर्ण रूप से विराजमान है, परन्तु उसे केवल सच्चे गुरु और महात्माओं की शरण में आकर ही पाया जा सकता है। (586)