अकालपुरख का स्मरण संतोष और विश्वास का भण्डार है;
और एक भिखारी भी जो उस पर ध्यान करने का अभ्यास करता है, वह अपने वैभव और शक्तियों से राजा की तरह प्रसन्न होता है। (४३)
वे महान आत्माएँ दिन-रात उनके ध्यान में लीन रहते हुए सदैव आनंदित रहती हैं।
उनके लिए उनका ध्यान ही वास्तविक ध्यान है और उनका स्मरण ही वास्तविक स्मरण है। (४४)
राजत्व और भिक्षावृत्ति क्या है? इसे समझें
यह मनुष्यों और आत्माओं के निर्माता की स्मृति है। (45)
यदि ईश्वर का स्मरण आपके जीवन का घनिष्ठ मित्र बन जाए,
फिर दोनों लोक तुम्हारे अधीन हो जायेंगे। (46)
उनको याद करने में बड़ी प्रशंसा और स्तुति है
अतः हमें उनके नाम का ध्यान करना चाहिए, बल्कि उनका ही स्मरण करना चाहिए। (४७)