और, हर दीन वर्दीधारी व्यक्ति को ज्ञानी और बुद्धिमान बना दिया। (264)
मैं स्वयं को मोती, माणिक और रत्नों के रूप में अपने प्रियतम को प्रस्तुत करती हूँ,
जब मैं अपने जीवन का हर पल उसकी याद में बिताऊँगा। (265)
ये सभी सांसारिक हीरे-मोती नाशवान हैं;
परन्तु वाहेगुरु का स्मरण मनुष्य के लिए अत्यंत मूल्यवान है। (266)
क्या आप जानते हैं कि सर्वशक्तिमान के भक्तों की रीति-रिवाज और परंपरा क्या है?
वे मोक्षप्राप्त हो जाते हैं और जन्म-मरण के चक्र से सदा के लिए मुक्त हो जाते हैं। (267)
वे अकालपुरख को याद किये बिना एक क्षण भी नहीं बिताते,
वे अपना सुन्दर ध्वज (ध्यान का) नौ आकाशों पर फहराते हैं। (268)
वे सम्पूर्ण विश्व की भलाई की कामना और प्रार्थना करते हैं,