विचार करें कि उसने ध्यान की विधा या विधि अपना ली है। (239)
यह धरती और आकाश ईश्वर की रचनाओं से भरे हुए हैं,
परन्तु यह संसार उसे खोजने के लिए सभी दिशाओं में भटकता और भटकता रहता है कि वह कहाँ है। (240)
यदि आप अपनी दृष्टि अकालपुरख की एक झलक पर स्थिर रख सकें,
फिर जो कुछ तुम देखोगे वह सर्वशक्तिमान वाहेगुरु का दर्शन होगा। (241)
जिसने भी उस महान आत्मा को देखा, समझो उसे सर्वशक्तिमान के दर्शन हो गये;
और, उस व्यक्ति ने ध्यान के मार्ग को समझ लिया है और उसे पा लिया है। (242)
ईश्वर के प्रति भक्ति पर ध्यान केन्द्रित करने से स्वभाव में एक असामान्य रंगत आ जाती है,
ऐसी समर्पित भक्ति के प्रत्येक पहलू से अकालपुरख की महिमा और प्रभा टपकती है। (243)
वे इस समस्त माया के स्वामी हैं, यह उनका अपना स्वरूप है;