यह अभी भी संभव है यदि कोई मंसूर की तरह क्रूस पर अपना पैर रखने के लिए तैयार हो। (12) (2)
हे मन! यदि तेरे मन में शिक्षा-विद्यालय जाने का उद्देश्य नहीं है, या तू शिक्षक से डरता है,
हो सकता है कि आप ऐसा न कर पाएं, लेकिन कम से कम आप बार की ओर तो जा ही सकते हैं। (12) (3)
जब मेरा हृदय, तुम्हारे प्रति मेरे गहरे स्नेह के कारण, खिले हुए बगीचे से ईर्ष्या करने लगा है,
फिर वह फूलों की क्यारियों पर जाने की बात कैसे सोच सकता है। (12) (4)
हे मेरे मन! जब तू प्रभु के रहस्यों से परिचित हो जाएगा,
तब केवल आप ही रहस्यों के भण्डार हैं और मेरे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। (12) (5)
जब घर के अन्दर सैकड़ों बाग-बगीचे खिल रहे हों, शरीर,
गोया कहते हैं, फिर कोई किसी अन्य ढांचे में कैसे जा सकता है? (12) (6)
भाई साहब संसारी लोगों से कहते हैं कि, "आपने अंततः देख लिया कि अकालपुरख के साधकों ने उसे पाने का एकमात्र मार्ग अपनाया, तब आपने इस अनमोल जीवन से पूरा लाभ उठाया।" (13) (1)