सब लोग तुम्हें नमस्कार करते हैं!
हे प्रभु, तू सदैव ही कामनारहित है!
कि तुम अजेय हो!
हे प्रभु! ...
तू ही ओम है, वह आदि सत्ता है!
कि तुम भी अनादि हो!
वह तू शरीरहीन और नामहीन है!
हे प्रभु! ...
हे प्रभु! आप तीनों देवताओं और गुणों के नाश करने वाले हैं!
कि तुम अमर और अभेद्य हो!
कि तुम्हारा भाग्य-लेख सभी के लिए है!
तू सबसे प्रेम करता है! 129
हे प्रभु! आप ही तीनों लोकों के भोक्ता हैं!
कि तुम अटूट और अछूते हो!
हे प्रभु! तू नरक का नाश करने वाला है!
हे प्रभु! ...
तेरी महिमा अवर्णनीय है!
कि तुम शाश्वत हो!
हे प्रभु! तू असंख्य रूपों में निवास करता है!
कि तू सभी के साथ अद्भुत रूप से एक है! 131