(प्रभु) आप अजेय हैं! 17. 67.
(प्रभु) आप ब्रह्मचर्य की परिभाषा हैं!
(प्रभु) आप ही पुण्य कर्म के साधन हैं!
(प्रभु) आप मोक्ष हैं!
(प्रभु) आप ही उद्धार हैं! 18. 68.
(प्रभु) आप हैं! आप हैं!
(प्रभु) आप हैं! आप हैं!
(प्रभु) आप हैं! आप हैं!
(प्रभु,) आप हैं! आप हैं! 19. 69.
(प्रभु) आप हैं! आप हैं!
(प्रभु) आप हैं! आप हैं!
(प्रभु) आप हैं! आप हैं!
(प्रभु,) आप हैं! आप हैं! 20. 70.
आपकी कृपा से कबीट
यदि भगवान् की प्राप्ति गंदगी खाने से, शरीर पर राख लगाने से तथा श्मशान में निवास करने से होती है, तो सूअर गंदगी खाता है, हाथी और गधा अपने शरीर में राख भर लेते हैं तथा भिखारी श्मशान में निवास करता है।
यदि भगवान भिक्षुओं के आश्रम में, मौन रहकर, विरक्त भाव से विचरण करते हुए मिलते हैं, तो उल्लू भी भिक्षुओं के आश्रम में रहता है, मृग भी विरक्त भाव से विचरण करता है और वृक्ष भी मृत्युपर्यन्त मौन रहता है।
यदि वीर्य को रोककर नंगे पैर विचरण करने से भगवान की प्राप्ति होती है, तो वीर्य को रोकने के लिए हिजड़े की भी प्रशंसा की जा सकती है और बंदर हमेशा नंगे पैर ही विचरण करता है।
जो स्त्री के वश में है, काम और क्रोध में लिप्त है तथा जो एकमात्र परमेश्वर के ज्ञान से भी अनभिज्ञ है, वह मनुष्य संसार सागर से कैसे पार हो सकता है? 1.71.
यदि भगवान् की प्राप्ति वन में भटकने से, केवल दूध पीकर तथा वायु पर निर्वाह करने से होती है, तो फिर प्रेत वन में भटकता है, सभी शिशु दूध पर जीवित रहते हैं तथा सर्प वायु पर जीवित रहते हैं।
यदि भगवान घास खाकर और धन का लोभ त्यागकर मिलते हैं, तो बैल और गाय के बच्चे भी वैसा ही करते हैं।