"सबका मूल, स्रोत क्या है? इन समयों के लिए क्या शिक्षाएँ हैं?
आपके गुरु कौन हैं? आप किसके शिष्य हैं?
वह कौन सी वाणी है, जिससे तुम अनासक्त रहते हो?
हे नानक, हे बालक, हम जो कहते हैं, उसे सुनो।
हमने जो कहा है उस पर अपनी राय दीजिए।
शब्द हमें इस भयंकर संसार-सागर से कैसे पार ले जा सकता है?" ||४३||
हवा से ही शुरुआत हुई। यह सच्चे गुरु की शिक्षाओं का युग है।
शब्द गुरु है, जिस पर मैं प्रेमपूर्वक अपनी चेतना केंद्रित करता हूँ; मैं शिष्य हूँ।
अव्यक्त वाणी बोलते हुए, मैं अनासक्त रहता हूँ।
हे नानक, युगों-युगों से जगत के स्वामी मेरे गुरु हैं।
मैं 'शबद' के उपदेश, एक ईश्वर के वचन का चिंतन करता हूँ।
गुरुमुख अहंकार की आग बुझाता है ||४४||
"मोम के दांतों से कोई लोहा कैसे चबा सकता है?
वह कौन सा भोजन है, जो गर्व को दूर कर देता है?
बर्फ के घर महल में अग्नि के वस्त्र पहनकर कोई कैसे रह सकता है?
वह गुफा कहां है, जिसके भीतर कोई अविचल रह सके?
हमें यहां-वहां व्याप्त किसे जानना चाहिए?
वह ध्यान क्या है, जो मन को स्वयं में लीन कर देता है?" ||४५||
अपने अन्दर से अहंकार और व्यक्तिवाद को मिटाना,
और द्वैत को मिटाकर, नश्वर ईश्वर के साथ एक हो जाता है।