कहीं आप यंत्र विधि के उपदेशक हैं, तो कहीं आप शस्त्रधारी हैं!
कहीं तुम होम (अग्नि) पूजा की शिक्षा हो, तुम देवताओं को अर्पण करने की शिक्षा हो!
कहीं तुम छंदशास्त्र की शिक्षा देते हो, कहीं तुम गायकों के गीतों के सम्बन्ध में चर्चा की शिक्षा देते हो! 27. 117
कहीं तू वीणा की शिक्षा दे रहा है, कहीं गीत गा रहा है!
कहीं तुम मलेच्छों (बर्बर) की भाषा हो, कहीं वैदिक अनुष्ठानों के बारे में हो!
कहीं तुम नृत्य की विद्या हो, कहीं तुम नागों की भाषा हो!
कहीं आप गरारू मंत्र हैं (वह मंत्र, जो सांप के जहर को मिटा देता है) और कहीं आप रहस्यमय कहानी (ज्योतिष के माध्यम से) बताते हैं! 28. 118
कहीं तुम इस लोक की सुन्दरी हो, कहीं स्वर्ग की अप्सरा हो, और कहीं पाताल की सुन्दरी हो!
कहीं तुम युद्ध कला की विद्या हो और कहीं तुम अ-तत्व सुन्दरी हो!
कहीं तुम वीर युवक हो, कहीं तुम मृगचर्मधारी तपस्वी हो!
कहीं छत्र के नीचे राजा, कहीं शासक प्रभुता सम्पन्न अधिकारी! 29. 119
हे पूर्ण प्रभु! मैं आपके समक्ष नतमस्तक हूँ! आप सदैव चमत्कारी शक्तियों के दाता हैं!
अजेय, अभेद्य, आदि, अद्वैत प्रभु!
आप निर्भय हैं, किसी भी बंधन से मुक्त हैं और आप सभी प्राणियों में प्रकट हैं!
हे अद्भुत अतीन्द्रिय प्रभु, मैं आपके समक्ष नतमस्तक हूँ! 30. 120
आपकी कृपा से पाडगरी छंद!
हे प्रभु! आप अव्यक्त महिमा और ज्ञान के प्रकाश हैं!
आप अद्वैत, अविनाशी, अजर सत्ता हैं!
तुम अविभाज्य महिमा और अक्षय भण्डार हो!
आप सभी प्रकार के अनंत दाता हैं! 1. 121