कहीं तो सामान्य कवियों का प्रवचन और कहानी है!
कहीं तू लोहा है तो कहीं तू चमकीला सोना है!
कहीं तुम मधुर वाणी बोलते हो, कहीं तुम मधुर वाणी बोलते हो, और कहीं तुम आलोचना करते हो, दोष ढूंढते हो! 22. 112
कहीं आप वेदों की विद्या हैं और कहीं आप साहित्य हैं!
कहीं तू अद्भुत प्रयास करता है और कहीं तू चित्र के समान दिखता है!
कहीं न कहीं आप पवित्र पुराणों के सिद्धांतों को समझते हैं!
और कहीं तू पवित्र क़ुरआन के गीत गाता है! ! 23. 113
कहीं तुम सच्चे मुसलमान हो और कहीं ब्राह्मण धर्म के अनुयायी हो!
कहीं तुम वृद्धावस्था में हो और कहीं तुम बालक के समान आचरण करते हो!
कहीं तुम वृद्ध शरीर से रहित युवा हो!
कहीं तू शरीर से प्रेम करता है और कहीं तू अपना घर त्याग देता है! 24. 114
कहीं तो आप योग और भोग में लीन हैं और कहीं तो आप व्याधि और आसक्ति का अनुभव कर रहे हैं!
कहीं तो आप व्याधियों को दूर करने वाले हैं और कहीं तो आप भोग का परित्याग कर देते हैं!
कहीं तुम राजसी ठाठ-बाट में हो और कहीं तुम राजसी नहीं हो!
कहीं तुम पूर्ण बुद्धिजीवी हो और कहीं तुम परम प्रेम के अवतार हो! 25. 115
कहीं तुम अरबी हो, कहीं तुर्की, कहीं फ़ारसी!
कहीं तू पथलवी है, कहीं पुश्तो है, कहीं संस्कृत है!
कहीं तू अरबी है, कहीं तुर्की है, कहीं फ़ारसी है
कहीं तुम राज्य-विद्या हो और कहीं तुम राज्य की राजधानी हो!! 26. 116
कहीं आप मंत्रों के उपदेश हैं और कहीं आप तंत्रों का सार हैं!