मनुष्य दुष्टता से बंधा हुआ है और माया नामक सर्प द्वारा ग्रसित है।
स्वेच्छाचारी मनमुख हार जाता है, और गुरुमुख लाभ पाता है।
सच्चे गुरु के मिलने से अंधकार दूर हो जाता है।
हे नानक, अहंकार को मिटाकर मनुष्य प्रभु में लीन हो जाता है। ||१५||
अपने अंदर गहराई से केंद्रित होकर, पूर्ण तल्लीनता से,
आत्मा-हंस उड़ नहीं जाता, और शरीर-दीवार नहीं गिरती।
तब व्यक्ति को पता चलता है कि उसका सच्चा घर अंतर्ज्ञान की गुफा में है।
हे नानक, सच्चा प्रभु सत्यवादियों से प्रेम करता है। ||१६||
"तुम अपना घर क्यों छोड़ कर भटकती उदासियाँ बन गयी हो?
तुमने ये धार्मिक वस्त्र क्यों अपनाये हैं?
आप किस सामान का व्यापार करते हैं?
तुम दूसरों को अपने साथ कैसे पार ले जाओगे?" ||17||
मैं गुरुमुखों की खोज में भटकता हुआ उदासि बन गया।
मैंने भगवान के दर्शन की धन्य दृष्टि की खोज में ये वस्त्र धारण किये हैं।
मैं सत्य के सामान का व्यापार करता हूँ।
हे नानक, मैं गुरुमुख बनकर दूसरों को पार ले जाता हूँ। ||१८||
"आपने अपने जीवन की दिशा कैसे बदली है?
आपने अपने मन को किससे जोड़ा है?
आपने अपनी आशाओं और इच्छाओं पर कैसे काबू पाया है?
आपने अपने नाभिक के भीतर गहरे प्रकाश को कैसे पाया है?