नौ द्वारों पर नियंत्रण का अभ्यास करने से, व्यक्ति दसवें द्वार पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेता है।
वहाँ, परम प्रभु की अविचल ध्वनि धारा कम्पित और प्रतिध्वनित होती है।
उस सच्चे प्रभु को देखो जो सर्वत्र विद्यमान है और उसी में लीन हो जाओ।
सच्चा प्रभु प्रत्येक हृदय में व्याप्त है।
शब्द की गुप्त बानी प्रकट हो जाती है।
हे नानक, सच्चा प्रभु प्रकट और जाना हुआ है। ||५३||
अंतर्ज्ञान और प्रेम के माध्यम से प्रभु से मिलने पर शांति मिलती है।
गुरमुख जागृत और सजग रहता है, उसे नींद नहीं आती।
वह असीम, पूर्ण शब्द को अपने भीतर गहराई से स्थापित करता है।
शबद का जाप करने से वह मुक्त हो जाता है और दूसरों का भी उद्धार करता है।
जो लोग गुरु की शिक्षाओं का अभ्यास करते हैं, वे सत्य के प्रति सजग हो जाते हैं।
हे नानक! जो लोग अपने अहंकार को मिटा देते हैं, वे प्रभु से मिल जाते हैं; वे संशय से पृथक नहीं रहते। ||५४||
"वह स्थान कहां है, जहां बुरे विचार नष्ट हो जाते हैं?
नश्वर मनुष्य वास्तविकता का सार नहीं समझता; फिर वह क्यों पीड़ा सहे?"
जो मृत्यु के द्वार पर बंधा हुआ है, उसे कोई नहीं बचा सकता।
शबद के बिना किसी को कोई श्रेय या सम्मान नहीं मिलता।
"कोई व्यक्ति समझ कैसे प्राप्त कर सकता है और पार कैसे जा सकता है?"
हे नानक, मूर्ख स्वेच्छाचारी मनमुख नहीं समझता। ||५५||
गुरु के शब्द का चिंतन करने से बुरे विचार मिट जाते हैं।
सच्चे गुरु से मिलकर मुक्ति का द्वार मिल जाता है।