युद्ध भूमि में जटाधारी योद्धा पंक्तिबद्ध होकर युद्ध में संलग्न हैं।
लटकनों से सजे भाले झुके हुए लगते हैं
जैसे जटाधारी मुनिगण स्नान के लिए गंगा की ओर जाते हैं।46.
पौड़ी
दुर्गा और राक्षसों की शक्तियां एक दूसरे को तीखे कांटों की तरह छेद रही हैं।
योद्धाओं ने युद्ध भूमि में बाणों की वर्षा की।
अपनी तीखी तलवारें खींचकर वे अंगों को काट देते हैं।
जब सेनाएं आपस में मिलीं, तो पहले तलवारों से युद्ध हुआ।47.
पौड़ी
सेनाएं बड़ी संख्या में आईं और योद्धाओं की पंक्तियां आगे बढ़ीं
उन्होंने अपनी तीखी तलवारें म्यान से निकाल लीं।
युद्ध की ज्वाला भड़कने पर महान अहंकारी योद्धाओं ने जोर से जयकारा लगाया।
सिर, धड़ और भुजाओं के टुकड़े बगीचे के फूलों जैसे दिखते हैं।
और (शरीर) बढ़ई द्वारा काटे गए चंदन के पेड़ों की तरह दिखाई देते हैं।48.
जब गधे की खाल से लिपटा हुआ तुरही बजाया गया तो दोनों सेनाएं एक दूसरे के सामने आ खड़ी हुईं।
योद्धाओं की ओर देखते हुए दुर्गा ने वीर योद्धाओं पर निशाना साधकर अपने बाण छोड़े।
पैदल योद्धा मारे गए, हाथी मारे गए, रथ और घुड़सवार भी मारे गए।
बाणों की नोकें अनार के फूलों की भाँति कवच में घुस गयीं।
देवी काली क्रोधित हो गईं, उन्होंने अपने दाहिने हाथ में तलवार पकड़ ली
उन्होंने मैदान के इस छोर से लेकर उस छोर तक कई हजार राक्षसों (हिरण्यकशिपु) का नाश कर दिया।