जो कुछ भी परमेश्वर को प्रसन्न करता है, अंततः वही घटित होता है।
वह स्वयं अनंत तरंगों में सर्वव्यापी है।
परमप्रभु परमेश्वर की क्रीड़ा को जाना नहीं जा सकता।
जैसे-जैसे समझ दी जाती है, वैसे-वैसे व्यक्ति प्रबुद्ध होता है।
परमप्रभु परमेश्वर, सृष्टिकर्ता, शाश्वत एवं चिरस्थायी है।
सदा-सदा के लिए, वह दयालु है।
हे नानक, उनका स्मरण करते हुए, ध्यान में उनका स्मरण करते हुए मनुष्य परमानंद का लाभ प्राप्त करता है। ||८||९||
सलोक:
बहुत से लोग प्रभु की स्तुति करते हैं। उसका कोई अंत या सीमा नहीं है।
हे नानक, ईश्वर ने सृष्टि की रचना की, उसके अनेक प्रकार और विविध प्रजातियाँ। ||१||
अष्टपदी:
लाखों लोग उनके भक्त हैं।
लाखों लोग धार्मिक अनुष्ठान और सांसारिक कर्तव्य निभाते हैं।
कई लाखों लोग पवित्र तीर्थस्थलों के वासी बन जाते हैं।
लाखों लोग जंगल में संन्यासी बनकर भटक रहे हैं।
कई लाखों लोग वेदों को सुनते हैं।
कई लाखों लोग कठोर तपस्या करने वाले बन जाते हैं।
लाखों लोग अपनी आत्मा में ध्यान को प्रतिष्ठित करते हैं।
लाखों कवि कविता के माध्यम से उनका चिंतन करते हैं।
लाखों लोग उनके शाश्वत नवीन नाम का ध्यान करते हैं।