हे नानक, सृष्टिकर्ता की सीमा कोई नहीं पा सकता। ||१||
लाखों लोग आत्म-केंद्रित हो जाते हैं।
लाखों लोग अज्ञानता के कारण अंधे हो गये हैं।
लाखों लोग पत्थर दिल कंजूस हैं।
लाखों लोग हृदयहीन हैं, उनकी आत्माएं सूखी और मुरझाई हुई हैं।
कई लाखों लोग दूसरों की संपत्ति चुराते हैं।
कई लाखों लोग दूसरों की निंदा करते हैं।
माया में कई लाखों लोग संघर्ष करते हैं।
लाखों लोग विदेशी धरती पर भटक रहे हैं।
ईश्वर उन्हें जिस चीज से जोड़ता है, वे उसी में संलग्न हो जाते हैं।
हे नानक! केवल सृष्टिकर्ता ही अपनी सृष्टि की गतिविधियों को जानता है। ||२||
लाखों लोग सिद्ध, ब्रह्मचारी और योगी हैं।
लाखों लोग राजा हैं और सांसारिक सुखों का आनंद ले रहे हैं।
लाखों पक्षी और साँप बनाए गए हैं।
कई लाखों पत्थर और पेड़ पैदा किये गये हैं।
हवा, पानी और आग कई लाखों हैं।
दुनिया के कई देश और क्षेत्र लाखों हैं।
चाँद, सूरज और तारे लाखों हैं।
लाखों की संख्या में देवता, राक्षस और इंद्र अपने राजसी छत्रों के नीचे विराजमान हैं।
उसने सम्पूर्ण सृष्टि को अपने धागे में पिरोया है।