क्रोधित राक्षस युद्ध के लिए जोर से चिल्लाने लगे।
युद्ध छेड़ने के बाद भी कोई भी पीछे नहीं हट सका।
ऐसे राक्षस इकट्ठे होकर आये हैं, अब देखिये युद्ध होने वाला है।।३३।।
पौड़ी
निकट आने पर राक्षसों ने शोर मचा दिया।
यह कोलाहल सुनकर दुर्गा अपने सिंह पर सवार हो गयीं।
उसने अपनी गदा को घुमाया और उसे अपने बाएं हाथ से ऊपर उठाया।
उसने स्रांवत बीज की सारी सेना को मार डाला।
ऐसा प्रतीत होता है कि योद्धा नशेड़ियों की तरह नशा करते हुए घूम रहे थे।
असंख्य योद्धा युद्ध भूमि में पैर पसारते हुए उपेक्षित पड़े हैं।
ऐसा लगता है कि होली खेलने वाले लोग सो रहे हैं।34.
स्रांवत बीज ने शेष सभी योद्धाओं को बुलाया।
वे युद्ध के मैदान में मीनारों की तरह प्रतीत होते हैं।
सभी ने अपनी तलवारें खींच लीं और अपने हाथ ऊपर उठा दिए।
वे चिल्लाते हुए सामने आये, 'मारो, मारो'।
कवच पर तलवारों के प्रहार से खटपट उत्पन्न होती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि कारीगर हथौड़े की चोट से बर्तनों को गढ़ रहे हैं।35.
जब यम के वाहन भैंसे की खाल से लिपटी तुरही बजाई गई, तो सेनाएं एक-दूसरे पर आक्रमण करने लगीं।
(देवी) युद्ध के मैदान में पलायन और घबराहट का कारण थीं।
योद्धा अपने घोड़ों और काठियों सहित गिर जाते हैं।