वह आदि पुरुष है, अद्वितीय है, अपरिवर्तनशील है।3.
वह रंग, चिह्न, जाति और वंश से रहित है।
वह शत्रु, मित्र, पिता और माता से रहित है।
वह सबसे दूर है और सबसे करीब है।
उसका निवास जल में, पृथ्वी पर और आकाश में है।4.
वह असीम सत्ता है और उसकी दिव्य शक्ति अनंत है।
देवी दुर्गा उनके चरणों में शरण लेती हैं और वहीं निवास करती हैं।
ब्रह्मा और विष्णु उसका अंत नहीं जान सके।
चतुर्मुख भगवान ब्रह्मा ने उनका वर्णन 'नेति नेति' (यह नहीं, यह नहीं) कहकर किया।5.
उन्होंने लाखों इन्द्र और उपिन्द्र (छोटे इन्द्र) उत्पन्न किये हैं।
उसने ब्रह्मा और रुद्र (शिव) को बनाया और नष्ट किया है।
उन्होंने चौदह लोकों की लीला रची है।
और फिर स्वयं उसे अपने भीतर विलीन कर लेते हैं।६।
अनंत दैत्य, देवता और शेषनाग।
उन्होंने गंधर्व, यक्ष और उच्च चरित्र वाले प्राणियों की रचना की है।
भूत, भविष्य और वर्तमान की कहानी।
वह प्रत्येक हृदय के अन्तरतम रहस्यों को जानता है।7.
जिसका कोई पिता, माता, जाति और वंश नहीं है।
उनमें से किसी के प्रति भी उसका अविभाजित प्रेम नहीं है।
वह सभी ज्योतियों (आत्माओं) में विलीन है।