उसने वन में फल, फूल और कली का सृजन किया है! 11. 151
उसने पृथ्वी सुमेरु पर्वत और आकाश की रचना की है, पृथ्वी को रहने के लिए निवास स्थान बनाया है!
मुस्लिम व्रत और एकादशी व्रत को चंद्रमा से जोड़ा गया है!
चाँद और सूरज के दीपक बनाए गए हैं!
और अग्नि और वायु के शक्तिशाली तत्व बनाए गए हैं! 12. 152
उसने अविभाज्य आकाश को उसके भीतर सूर्य सहित बनाया है!
उसी ने तारों को बनाया और उन्हें सूर्य के प्रकाश में छिपा दिया!
उसने चौदह सुन्दर लोकों की रचना की है!
तथा गणों गंधर्वों, देवताओं और राक्षसों की भी सृष्टि की है! 13. 153
वह शुद्ध तत्वरहित है, उसकी बुद्धि शुद्ध है!
वह रोग रहित अथाह है और अनंत काल से सक्रिय है!
वह वेदना रहित, भेद रहित और अजेय पुरुष है!
उनका चक्र सभी चौदह लोकों में घूमता रहता है! 14. 154
वह स्नेह रंग से रहित है और बिना किसी निशान के है!
वह दुःख भोग और योग से युक्त होकर रहित है!
वह पृथ्वी का विध्वंसक और आदि सृष्टिकर्ता है!
देवता, दानव और मनुष्य सभी उनको नमस्कार करते हैं! 15. 155
उन्होंने गण, किन्नर, यक्ष और नागों की रचना की!
उसने रत्न, माणिक, मोती और जवाहरात बनाए!
उसकी महिमा अजर है और उसका लेखा अनन्त है!