यह पतन और आदत से रहित है, यह एक ही रूप में जाना जाता है।
सभी घरों और स्थानों में इसकी असीमित चमक को स्वीकार किया जाता है। ६.१६६।
उसका न तो कोई शरीर है, न घर, न जाति और न ही कोई वंश।
उसका न कोई मंत्री है, न कोई मित्र, न कोई पिता और न कोई माता।
उसके कोई अंग नहीं हैं, कोई रंग नहीं है, तथा उसे किसी साथी से कोई स्नेह नहीं है।
उसमें कोई दोष नहीं, कोई दाग नहीं, कोई द्वेष नहीं और कोई शरीर नहीं।७.१६७।
वह न तो सिंह है, न गीदड़, न राजा और न ही दरिद्र।
वह अहंकाररहित, मृत्युरहित, बंधुरहित और संशयरहित है।
वह न तो यक्ष है, न गंधर्व, न पुरुष है और न ही स्त्री।
वह न तो चोर है, न साहूकार है, न राजकुमार है।८.१६८।
वह आसक्ति से रहित है, घर से रहित है, तथा शरीर-रचना से रहित है।
वह छल-कपट से रहित है, दोष-रहित है, तथा छल-कपट के मिश्रण से रहित है।
वह न तो तंत्र है, न मंत्र है और न ही यंत्र का रूप है।
वह स्नेह रहित, रंग रहित, रूप रहित और वंश रहित है। ९.१६९।
वह न तो यंत्र है, न मंत्र है और न ही तंत्र का निर्माण है।
वह छल-कपट से रहित है, दोष से रहित है तथा अज्ञान के मिश्रण से रहित है।
वह स्नेह रहित, रंग रहित, रूप रहित और रेखा रहित है।
वह कर्मरहित, धर्मरहित, जन्मरहित और वेशरहित है। १०.१७०।
वह पिता रहित, परब्रह्म, विचार से परे और अविभाज्य सत्ता है।
वह अजेय और अविवेकी है, वह न तो दरिद्र है और न ही राजा।